प्रोफ़ेसर शाफ़े किदवई द्वारा साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित साहित्य महोत्सव में सत्र की अध्यक्षता

मुशीर अहमद खां-

अलीगढ़ 15 मार्चः प्रसिद्ध बहुभाषी विद्वान, स्तंभकार, अनुवादक और निदेशक, सर सैयद अकादमी, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, प्रोफ़ेसर शाफे किदवई (जनसंचार विभाग, एएमयू) ने साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा मनाये जाने वाले दुनिया के सबसे बड़े साहित्यिक उत्सव ‘फेस्टिवल ऑफ लेटर्स 2024’ के दौरान मीर की त्रयजन्मशताब्दी संगोष्ठी के पहले सत्र की अध्यक्षता की। ज्ञात हो कि यह उत्सव भारत की महान साहित्यिक विरासत का जश्न मनाने के लिए 11-16 मार्च तक आयोजित किया जा रहा है, जिसमें देश में प्रचलित विभिन्न भाषाओं और बोलियों की साहित्यिक कृति को शामिल किया गया है।

अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रोफेसर किदवई ने कहा कि मीर की बहुस्तरीय कविता को उनके जीवनी विवरण के चश्मे से नहीं देखा जा सकता। कवि ढेर सारी घटनाओं का उल्लेख करता है जिनमें भौतिक उपस्थिति का कोई निशान नहीं है। वर्णनकर्ता स्वयं मीर नहीं है। इसके अलावा उनकी कविता एकतरफा प्यार और अभूतपूर्व दुख और निराशा के बारे में नहीं है। उन्होंने कहा कि मीर का रोना, विलाप और निराशा की स्पष्ट भावना मानवीय गुण हैं, कविता के गुण नहीं। मीर को समझने के लिए हमें इन रूढ़ियों से परे जाना होगा।

उन्होंने मीर की बिना सेंसर वाली जीवनी का भी जिक्र किया जो हाल ही में प्रकाशित हुई है। इससे पहले, मीर द्वारा संलग्न किए गए कई उपाख्यानों को हटा दिया गया था और उर्दू अनुवादों में शामिल नहीं किया गया था। अब, अंजुमन तररकाई उर्दू हिंद ने इसका पूरा पाठ प्रकाशित करके अच्छा काम किया है।

प्रोफेसर किदवई ने ‘स्वतंत्रता के बाद के भारतीय साहित्य’ पर एक अन्य राष्ट्रीय सेमिनार में ‘पिछले सात दशकों में उर्दू साहित्य’ पर एक व्याख्यान भी प्रस्तुत किया, और वह 16 मार्च को साहित्य अकादमी के साहित्य महोत्सव में ‘गोपी चंद नारंग के जीवन और कार्यों’ पर एक संगोष्ठी में एक सत्र की भी अध्यक्षता करेंगे।

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