एएमयू में महिला से संबंधित नए सरोकारों पर एक सप्ताह का जीआईएएन पाठ्यक्रम शुरू

अलीगढ़, 15 दिसंबरः अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के ग्लोबल इनिशिएटिव ऑफ एकेडमिक नेटवर्क्स (जीआईएएन) के तत्वाधान में ‘महिलाओं से संबंधित नए सरोकारः उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के उत्तर-पश्चिम भारत (और पाकिस्तान) में परंपरा, आधुनिकता और लैंगिक चेतना’ विषय पर एक सप्ताह का कोर्स आयोजित किया गया।
पाठ्यक्रम समन्वयक, प्रोफेसर गुलफिशां खान, अध्यक्ष और समन्वयक, सेंटर ऑफ एडवांस्ड स्टडी, इतिहास विभाग, ने ऑनलाइन और ऑफलाइन आयोजित पाठ्यक्रम में देश भर के केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों से शामिल होने वाले सभी प्रतिनिधियों और प्रतिभागियों का गर्मजोशी से स्वागत किया।
प्रोफेसर खान ने कहा कि विभाग ने महिलाओं और लिंग संबंधी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए कई पाठ्यक्रम शुरू किए हैं। यह पाठ्यक्रम महिलाओं और लिंग-संबंधित मुद्दों पर एक सूचित दृष्टिकोण प्राप्त करने का अवसर प्रदान करेगा, क्योंकि पाठ्यक्रम का उद्देश्य प्रतिभागियों को उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के व्यापक वैश्विक संदर्भ में भारतीय महिलाओं के अनुभवों का पता लगाने में सक्षम बनाना है। उन्होंने कहा कि इस उद्देश्य की प्राप्ति चयनित स्रोत सामग्री के मूल्यांकन और वर्तमान इतिहासलेखन की जांच के माध्यम से की जाएगी।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए, प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर इरफान हबीब, प्रोफेसर एमेरिटस, अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय, ने महिला शिक्षा के सन्दर्भ में ऐतिहासिक संघर्षों और अलीगढ़ आंदोलन के दौरान आने वाली चुनौतियों और लैंगिक समानता की दिशा में धीमी प्रगति पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि उर्दू भाषी महिलाओं के बीच आधुनिक शिक्षा शेख मुहम्मद अब्दुल्ला और उनकी समर्पित पत्नी वहीद जहां बेगम के अथक प्रयासों का परिणाम थी।
इससे पूर्व, विशिष्ट अतिथि और एडवांस्ड सेंटर फॉर वीमेन स्टडीज की पूर्व निदेशक प्रोफेसर शिरीन मूसवी ने सरोजिनी नायडू और कस्तूरबा गांधी जैसी नेताओं का उदाहरण देते हुए कहा कि महिलाओं ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाईं।
स्थानीय पाठ्यक्रम समन्वयक प्रोफेसर एम.जे. वारसी ने जीआईएएन को एक आशाजनक परियोजना के रूप में रेखांकित किया, जो भारतीय शिक्षा जगत को प्रमुख विदेशी संस्थानों, शिक्षकों और विशेषज्ञों से जोड़ रहा है।
जन संचार विभाग के प्रोफेसर शाफे किदवई ने साहित्य से उदाहरणों का हवाला देते हुए, पुरुष-केंद्रित आख्यानों को चुनौती देते हुए और महिलाओं की चेतना और संघर्षों को इंगित करते हुए, इतिहास पर एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।
आईक्यूएसी के निदेशक, प्रोफेसर असदुल्लाह खान ने विश्वविद्यालय में जीआईएएन पाठ्यक्रम की प्रगति की सराहना की और एनईपी-2020 में मान्यता प्राप्त अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और ऑनलाइन शिक्षण में इसकी भूमिका पर जोर दिया।
कला संकाय के डीन प्रोफेसर आरिफ नजीर ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि महिलाओं के प्रति सम्मान भारतीय पौराणिक कथाओं के साथ-साथ साहित्यिक परंपरा में भी गहराई से अंतर्निहित है, जिसे उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान मातृत्व और मातृभूमि के महत्व पर जोर देने के रूप में व्यक्त किया।
रॉयल होलोवे, लंदन विश्वविद्यालय, यूके में आधुनिक और समकालीन दक्षिण एशिया की इतिहासकार और पाठ्यक्रम की विदेशी विशेषज्ञ प्रोफेसर सारा फ्रांसिस डेबोरा अंसारी ने अपने स्वयं के शोध अनुभवों को साझा करते हुए इतिहास लेखन में अभिलेखों के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने महिलाओं के इतिहास को उजागर करने के लिए हर स्तर पर अध्यन की आवश्यकता पर भी जोर दिया। डॉ. लुबना इरफान ने धन्यवाद ज्ञापित किया।