मॉरीशस समेत कई देशों में रामकथा के साथ प्रवाहित हुई हिंदी

प्रभु श्रीराम की तरह हिंदी भी भारतीय संस्कृति की संवाहक हैं। जिस तरह हिंदी भाषा दुनिया के अलग-अलग देशों में जा बसे भारतवंशियों को अपनी संस्कृति एवं परंपरा से जोड़े हुए है, उसी तरह रामकाव्य विश्व को ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की प्रेरणा देता है। राम का व्यक्तित्व और उनकी कथा इतनी व्यापक है कि उसमें जीवन की गहराई और सूक्ष्मता, आदर्श विधि-विश्वास आदि स्थितियों, चित्तवृत्तियों और भावभूमियों की अभिव्यक्ति के लिए विपुल आकाश है। 19वीं शताब्दी में शर्त बंद प्रथा के अंतर्गत भारतीय मजदूरों का प्रवासन मारीशस, गुयाना, फिजी, सूरीनाम, त्रिनिदाद आदि देशों में हुआ। ये श्रमिक अधिकतर पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार से गए थे। इन्हें पांच वर्ष के एग्रीमेंट पर ले जाया गया था।