उत्तर प्रदेश में खामोशी बढ़ा रही विपक्षी गठबंधन की बेचैनी, बंगाल के बाद बिहार में मची खलबली

उत्तर प्रदेश

नई दिल्ली में 17 जनवरी को हुई बैठक के बाद भले ही सपा के प्रमुख महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव ने दावा किया हो कि ‘आधा सफर तय कर लिया है..’ लेकिन उस बैठक के बाद से अब तक के परिणाम को टटोलें तो माजरा ‘नौ दिन चले अढ़ाई कोस’ वाला दिखाई देता है। सीटों के बंटवारे पर रस्साकशी है और समन्वय के लिए अगली बैठक कब? यह तय नहीं। बंगाल के बाद बिहार में सामने आई खलबली के बीच उत्तर प्रदेश में छाई खामोशी ने कम से कम दोनों दलों के उन नेताओं की बेचैनी तो बढ़ा ही दी है, जो सपा-कांग्रेस गठबंधन के पक्षधर हैं।

कांग्रेस की ओर से वरिष्ठ नेताओं की टीम राज्यवार इस पर बात करने के लिए बना दी गई तो सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी अपने नेताओं का पैनल बना रखा है। दोनों दलों की इन समितियों के बीच एक सप्ताह पहले दिल्ली में बैठक हुई। सीटवार चर्चा के दावे किए गए। रामगोपाल ने दावा किया था कि आधा रास्ता तय हो गया है और आधा बाकी है। तब माना जा रहा था कि अब समन्वय और समझौते को गति मिलेगी, लेकिन उसके बाद से यूपी को लेकर कोई हलचल सुनाई नहीं दी।

कांग्रेस या सपा के वरिष्ठ नेता यह तक बताने की स्थिति में नहीं हैं कि अगली बैठक कब होगी। सपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दावा किया कि सार्वजनिक चर्चा को विराम देने के लिए अब व्यक्तिगत रूप से एक-एक, दो-दो नेता अपनी पार्टी का पक्ष लेकर भेंट-वार्ता कर रहे हैं। सपा को विश्वास है कि कांग्रेस 10-12 पर सहमत न हुई तो 15 से 17 सीटों के बीच मान जाएगी। वहीं, कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि कांग्रेस की तैयारी 25-28 सीटों के लिए है।

इसके अलावा सपा चाहती है कि कांग्रेस अभी सभी दावे वाली सीटों के संभावित प्रत्याशी बता दे, जबकि पार्टी की प्रत्याशी चयन की अपनी व्यवस्था है। वहीं, कुछ सीटों पर सपा के दावे और प्रत्याशियों की घोषणा भी कांग्रेस को पच नहीं रही है। तालमेल के गड़बड़ाने को इससे भी समझ सकते हैं कि सपा चाहती थी कि भारत जोड़ो न्याय यात्रा से पहले सीटें बांट ली जाएं, वहीं कांग्रेस अब चाहती है कि पहले सपा को यूपी में राहुल का ‘शो’ दिखा दिया जाए।

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