अब अपनी शर्तों पर क्रूड खरीद रहा है भारत

 नई दिल्ली।

  पेट्रोलियम बाजार में कभी भारत तेल उत्पादक देशों के पीछे घूमता था और उनसे विशेष छूट मांगने का आग्रह करता था। आम तौर पर इस आग्रह को खाड़ी देशों के या दूसरे क्षेत्रों के तेल उत्पादक देश कोई कान नहीं देते थे। अब हालात बदल गये हैं। अपनी बढ़ती हुई इकोनमी और कच्चे तेल की बढ़ती मांग की वजह से दुनिया भर के तेल उत्पादक देश ना सिर्फ भारत के साथ लंबी अवधि की तेल बिक्री समझौता करना चाहते हैं बल्कि दो-दो महीने की क्रेडिट (आपूर्ति अभी, भुगतान बाद में) की सुविधा देने को तैयार हैं। कुछ देश भारत को यहां तक गारंटी दे रहे हैं कि वह जितना चाहे उतनी क्रूड खरीद सकता है और इसमें उसे ढुलाई खर्च में भी राहत दी जाएगी। इन देशों में सिर्फ सउदी अरब और इराक जैसे देश नहीं है बल्कि अमेरिका जैसे तेल उत्पादक देश भी हैं जो भारत के बाजार में ज्यादा पैठ के लिए कूटनीतिक रास्ता भी अपना रहे हैं।पेट्रोलियम सेक्टर के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि फरवरी, 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पेट्रोलियम बाजार में भारत की पूछ पहले से ज्यादा बढ़ी है। जो देश 30 दिनों की भी क्रेडिट नहीं देते थे वह अपनी तरफ से 60 दिनों की क्रेडिट देने को तैयार हैं। पिछले एक वर्ष के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी अस्थिरता के बावजूद जिस तरह से कीमतें 75 से 90 डॉलर प्रति बैरल के स्तर में स्थिर रही हैं। खाड़ी क्षेत्र में हालात खराब होने के बावजूद क्रूड लगातार 75 डॉलर प्रति बैरल के करीब बनी हुई है।

ओपेक देशों के आंकड़े बता रहे हैं कि चीन और भारत ही दो सबसे बड़ी खरीददार देश रहेंगी। इसमें चीन की आर्थिक विकास दर को लेकर आशंका है लेकिन भारत की आर्थिक विकास लगातार मजबूत बनी हुई है। भारत की आर्थिक विकास दर औसतन 7 फीसद के करीब कई वर्षों तक रह सकती है। भारत में क्रूड की खपत भी तेजी से बढ़ रही है। यह एक वजह है कि तेल उत्पादक देश भारत को एक स्थिर खरीदार के तौर पर लुभाना चाहते हैं। दूसरी तरफ यूरोपीय देशों और अन्य एशियाई देशों की इकोनमी की रफ्तार भी वर्ष 2024 में बहुत खास नहीं रहने वाली। भारत का रणनीतिक सहयोगी देश अमेरिका भी भारत के साथ क्रूड को लेकर लंबी अवधि का समझौता करना चाहता है। भारत के दौरे पर आये अमेरिका के ऊर्जा उप-सचिव ज्योफ्री पैट नई दिल्ली में सरकार के कई अधिकारियों से अगले कुछ दिनों के दौरान मिलने वाले हैं और उनकी यात्रा का यह एक प्रमुख उद्देश्य है। अमेरिका अभी दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है और भारत उसके क्रूड का एक अहम खरीदार देश बन गया है। कुछ ही वर्षों मे भारत की कुल तेल खरीद में अमेरिका की हिस्सेदारी शून्य से बढ कर सात 

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